शिर्डी साईं एक इस्लामिक षड्यंत्र (समाधी पुजा से नरक की प्राप्ती - गिता)
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैँ की, जो लोग 'गुरुओ' की 'समाधी' पुजा करते है उन तामसी और पापी व्यक्तीओँ को अधोगती अर्थात नरक को प्राप्त होना पडता हैँ । ऐसे लोग तो महान अपवित्र और घोर नरको मे पडते हैँ ।
जी हां, जो हम कह रहे हैँ वह
भगवान श्रीकृष्ण के श्रीमदभगवत् गिताजी मेँ कहेँ हुयेँ वचनो के अनुसार हीँ कह रहे हैँ,
आईये जानते
भगवान श्रीकृष्ण के वचन,
यजन्ते सात्त्विका देवान्यक्षरक्षांसि राजसाः। प्रेतान्भूतगणांश्चान्ये जयन्ते तामसा जनाः॥
(गिता 17-4)
हे अर्जुन ! सात्त्विक पुरुष देवों को पूजते हैं, राजस पुरुष यक्ष और राक्षसों को तथा अन्य जो तामस मनुष्य हैं, वे प्रेत और भूतगणों को पूजते हैं ॥17-4॥
[यहां पर "भुतगण" शब्द का अर्थ 'भुत प्रेत पुजा' या "समाधी" पुजा जिसे इस्लाम मेँ 'मजार' कहां जाता हैँ, इस प्रकार किया गया हैँ । ]
तथा तामस लोक कौनसी गती को प्राप्त होते हैँ, ये समझाते हुये भगवान गिता के 14 वे अध्याय के 18 वे श्लोक मेँ कहते हैँ।
ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसाः । जघन्यगुणवृत्तिस्था अधो गच्छन्ति तामसाः ॥
(गिता 14-18)
अर्थात हे अर्जुन !सत्त्वगुण में स्थित पुरुष स्वर्गादि उच्च लोकों को जाते हैं, रजोगुण में स्थित राजस पुरुष मध्य में अर्थात मनुष्य लोक में ही रहते हैं और तमोगुण के कार्यरूप निद्रा, प्रमाद और आलस्यादि में स्थित तामस पुरुष अधोगति को अर्थात कीट, पशु आदि नीच योनियों को तथा नरकों को प्राप्त होते हैं ॥18॥
तथा श्रीमदभागवत् मेँ भी कहा गया हैँ,
पशुं विधिनालभ्य प्रेतभूतगणान् यजन ।
नरकानवशो जंतुर्गत्वा यात्युल्बणं तम: ॥
[श्रीमदभागवत् स्कन्ध 11, अध्याय 10, श्लोक 28]
अगर मनुष्य प्राणियोँको सताने लगे और विधी - विरद्ध पशुओँकी बलि देकर भुत और प्रेतोंकी उपासना मेँ लग जाय, तब तो वह पशुओंसे भी गया - बीता होकर अवश्य हीँ नरक मेँ जाता हैँ । उसे अन्त मेँ घोर अन्धकार स्वार्थ और परमार्थ से रहित अज्ञानमेँ ही भटकना पड़ता हैँ॥
इसिलिये साई समाधी को पुजन से आपको सिर्फ
नरक प्राप्ती होगी...
भगवान को पुजो... साई को छोडो मुर्ख हिन..बुद्दी..दुओ....
मुस्लिम वेशभूषा में साईं
एक मुस्लिम संत जो की हजारों करोडो पढ़े लिखे और अमिर लोगो, लेकिन मुर्ख हिन्दुओ के द्वारा पूजा जाता है | लाखो पढ़े लिखे हिंदू एक ऐसे मुस्लिम संत के अंध भक्त होकर पूजते है जिसे हम शिरडी के साईं बाबा के नाम से जानते है|
वो संत जो खुद एक मस्जिद में रहता था, सबके सामने कुरान पढता था और एक ही संदेश देता था की मुझे मरने के बाद दफना देना,, ना की जला देना, पर अधिकतर मुर्ख लोग उसे समझ नहीं पाए और उसे अपने भगवानो से ऊपर दर्जा देकर एक ऐसे मुर्दे को पूजते है जो स्वयं एक मुसलमान है…
सिर्फ यही नहीं यह पाखंडी खुद को हिंदू देवी देवताओं का अंश बताता था स्वयं में नारायण, शिव, श्रीकृष्ण और राम जैसे हजारों देवी देवताओं के रूप में खुद की पूजा करवाता था पर हिंदू मुस्लिम एकता की बात जरुर करता था|
ये एक पूरी तरह से एकतरफा कार्य है जिसमे सारा बलिदान केवल हिन्दुओ को ही देना पड़ता है जैसे की साईं राम, इस्लाम ग्रहण करना, मुस्लिम लड़के द्वारा हिंदू लड़की से शादी करना, और हिन्दुओ केबड़े धार्मिक स्थलों में मुसलमानों को ऊँचे पड़ देना आदि, और मुर्ख हिंदू इन बातो को मान भी लेता है बिना ये सोचे की परधर्म में जीना और उससे अपनाने पर लोक परलोक कही भी ठिकाना नहीं मिलता |
साईं का केवल एक ही उद्देश्य था जो किसी समय अजमेर के मुस्लिम संत ख्वाजा मुइनुद्दीन चिस्ती ने आरम्भ किया था| साईं का कार्य केवल उस परम्परा का निर्वहन करते हुए हिंदू को और मुर्ख बना कर इस्लाम के और समीप लाकर उनका मतांतरण कराना था| आज भी ९०० सालो की इस्लामी गुलामी के बाद हिंदू धर्म कुछ कमजोर अवश्य हुआ है और इसे दूर करने के लिए ऐसे पाखंडियोँ के पाखंड और षड्यंत्र को मिटाने की आवश्यकता है|
सनातनी ईश्वर भगवान श्रीकृष्ण को पीछे धकेलकर साईं को आगे लाने का षड्यंत्र हैँ।
बाबा शब्द फारसी और इस्लामी संस्कृति का एक शब्द है जिसका हिंदी या संस्कृत में कोई उल्लेख नहीं है परन्तु इसे दुस्प्रचारित किया गया की ये शब्द संस्कृत का है|
बाबा एक सूफी संत को मिलने वाली पदवी या नाम है जो मलेशिया के मुस्लिम संतो को मिलती है जब उन्हें कोई इस्लामिक सम्मान मिलता है|
बाबा शब्द असल में दादा (पिता के पिता) का ही दूसरा अर्थ है, बाद में ये उस व्यक्ति के लिए प्रयोग में होने लगा जो किसी सनातन संस्कृति को खतम करके इस्लामी सत्ता का ध्वज किसी देश में फहराता है| इसलिए एक तरह से साईं बाबा देश में इस्लामी ध्वज फहराने के लिए पूरी तरह से इस्लामी कठमुल्लो द्वारा प्रचारित किये जा रहे है|
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