शिरडी साई : कथाकथित भगवान, संत, फकिर या करोडपती
बाबा फ़क़ीर अथवा धनि
1. बाबा की चरण पादुका स्थापित करने के लिए बम्बई के एक भक्त ने 25 रुपयों का मनीआर्डर भेजा । स्थापना में कुल 100 रूपये व्यय हुए जिसमे 75 रुपये चंदे द्वारा एकत्र हुए ! प्रथम पाच वर्षों तक कोठारे के निमित 2 रूपये मासिक भेजते रहे । स्टेशन से छडे ढोने और छप्पर बनाने का खर्च 7 रूपये 8 आने सगुण मेरु नायक ने दिए ! {अध्याय 5} 25 75 =100 2 रु मासिक, 5 वर्षों तक = 120 रूपये 100 120 =220 रूपये कुल ये घटनाये 19वीं सदी की है उस समय लोगो की आय 2-3 रूपये प्रति माह हुआ करती थी !
तो 220 रूपये कितनी बड़ी रकम हुई ?? उस समय के लोग 2-3 रूपये प्रति माह में अपना जीवन ठीक ठाक व्यतीत करते थे ! और आज के 10,000 रूपये प्रति माह में अपना जीवन ठीक ठाक व्यतीत करते है ! तो उस समय और आज के समय में रुपयों का अनुपात (Ratio) क्या हुआ ? 10000/3=3333.33 तो उस समय के 220 रूपये आज के कितने के बराबर हुए ?
220*3333.33=733332.6 रूपये (7 लाख 33 हजार रूपये) यदि हम यह अनुपात 3333.33 की अपेक्षा कम से कम 1000 भी माने तो :-
उस समय के 220 रूपये अर्थात आज के कम से कम 2,20000 (2 लाख 20 हजार रूपये) {अनुपात=1000 } इतने रूपये एकत्र हो गये ? मस्त गप्पे है इस किताब में तो !
2. बाबा का दान विलक्षण था ! दक्षिणा के रूप में जो धन एकत्र होता था उसमें से वे किसी को 20, किसी को 15 व किसी को 50 रूपये प्रतिदिन वितरित कर देते थे ! {अध्याय 7 }
3. बाबा हाजी के पास गये और अपने पास से 55 रूपये निकाल कर हाजी को दे दिए ! {अध्याय 11 }
4. बाबा ने प्रो.सी.के. नारके से 15 रूपये दक्षिणा मांगी, एक अन्य घटना में उन्होंने श्रीमती आर. ए. तर्खड से 6 रूपये दक्षिणा मांगी {अध्याय 14 }
5 . उन्होंने जब महासमाधि ली तो 10 वर्ष तक हजारों रूपये दक्षिणा मिलने पर भी उनके पास स्वल्प राशी ही शेष थी । {अध्याय 14 } यहाँ हजारों रूपये को कम से कम 1000 रूपये भी माने तो आप सोच सकते है कितनी बड़ी राशी थी ये ? उस समय के 1000 अर्थात आज के 10 लाख रूपये कम से कम ! {अनुपात =1000 }
6 . बाबा ने आज्ञा दी की शामा के यहाँ जाओ और कुछ समय वर्तालाब कर 15 रूपये दक्षिणा ले आओ ! {अध्याय 18 }
7 बाबा के पास जो दक्षिणा एकत्र होती थी, उनमे से वे 50 रूपये प्रतिदिन बड़े बाबा को दे दिया करते थे ! {अध्याय 23 }
8 . प्रतिदिन दक्षिणा में बाबा के पास बहुत रूपये इक्कठे हो जाया करते थे, इन रुपयों में से वे किसी को 1, किसी को 2 से 5, किसी को 6, इसी प्रकार 10 से 20 और 50 रूपये तक वो अपने भक्तों को दे दिया करते थे ! {अध्याय 29 }
9 . निम्न प्रति अध्याय 32 की है : बाबा की कमाई = 2 (50 100 150 ) = 600 रूपये वाह !!
10 . बाबा ने काका से 15 रूपये दक्षिणा मांगी और कहा में यदि किसी से 1 रु. लेता हु तो 10 गुना लौटाया करता हु ! (अध्याय 35 )
11 . इन शब्दों को सुन कर श्री ठक्कर ने भी बाबा को 15 रूपये भेंट किये (अध्याय 35 )
12 . गोवा से दो व्यक्ति आए और बाबा ने एक से 15रूपये दक्षिणा मांगी ! (अध्याय 36 )
13 . पति पत्नी दोनों ने बाबा को प्रणाम किया और पति ने बाबा को 500 रूपये भेंट किये जो बाबा के घोड़े श्याम कर्ण के लिए छत बनाने के काम आये ! (अध्याय ३ ६ )
बाबा के पास घोडा भी था ?
ये कोन लोग थे जो बाबा को इतनी दक्षिणा दिए जा रहे थे !
दोस्तों आप स्वयं ही निर्णय ले ये क्या चक्कर है ?? में तो हेरान हु !
बाबा की जिद 14 अक्तूबर, 1918 को बाबा ने उन लोगो को भोजन कर लौटने को कहा ! लक्ष्मी बाई सिंदे को बाबा ने 9 रूपये देकर कहा “मुझे अब मस्जिद में अच्छा नही लगता ” इसलिए मुझे अब बूंटी के पत्थर वाडे में ले चलो, जहाँ में सुख पूर्वक रहूँगा” इन्ही शब्दों के साथ बाबा ने अंतिम श्वास छोड़ दी ! {अध्याय 43 } 1886 में मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन बाबा को दमा से अधिक पीड़ा हुई और उन्होंने अपने भगत म्हालसापति को कहा तुम मेरे शरीर की तिन दिन तक रक्षा करना यदि में वापस लौट आया तो ठीक, नही तो मुझे उस स्थान (एक स्थान को इंगित करते हुए) पर मेरी समाधी बना देना और दो ध्वजाएं चिन्ह रूप में फेहरा देना ! {अध्याय 43}
जब बाबा सन 1886 में मरने की हालत में थे तब तथा सन 1918 में भी, बाबे की केवल एक ही इच्छा थी मुझे तो बस मंदिर में ही दफ़न करना !
1918-1886 = 32 वर्षों से अर्थात 48 वर्ष की आयु से बाबा के दिमाग में ये चाय बन रही थी !
14. जीवन में अधिकतर बीमार व मृत्य बीमारी से !! बाबा की स्थति चिंता जनक हो गई और ऐसा दिखने लगा की वे अब देह त्याग देंगे ! {अध्याय ३९} 1886 में मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन बाबा को दमा से अधिक पीड़ा हुई और उन्होंने अपने भगत म्हालसापति को कहा तुम मेरे शरीर की तिन दिन तक रक्षा करना यदि में वापस लौट आया तो ठीक, नही तो मुझे उस स्थान (एक स्थान को इंगित करते हुए) पर मेरी समाधी बना देना और दो ध्वजाएं चिन्ह रूप में फेहरा देना ! {अध्याय 43}
1. बाबा को 1886 अर्थात 48 वर्ष की आयु में दमे की शिकायत हुई ! थापना में कुल 100 रूपये व्यय हुए =1,00,000 (1 लाख रूपये) “बाबा समाधिस्त हो गये ” – यह ह्रदय विदारक दुख्संवाद सुन सब मस्जिद की और दोड़े {अध्याय 43} स्पष्ट है बाबे ने मस्जिद में दम तोडा ! लोगो में बाबा के शरीर को लेकर मतभेद हो गया की क्या किया जाये और यह ३ ६ घंटों तक चलता रहा {अध्याय ४ ३ } इस किताब में बार बार समाधी/महासमाधी/समाधिस्त शब्द आया है किन्तु बाबा की मृत्यु दमे व बुखार से हुई ! बाद में दफन किया गया अतः उस स्थान को समाधी नही कब्र कहा जायेगा !! और क्रब्रों को पूजने वोलों के लिए भगवान श्री कृष्ण ने गीता जी में क्या कहा है आगे देखने को मिलेगा ! समाधी स्वइच्छा देहत्याग को कहते है ! 3 दिनों पुरानी लाश को बाद में मंदिर में दफन किया गया ! बाबा का शरीर अब वहीँ विश्रांति पा रहा है , और फ़िलहाल वह समाधी मंदिर नाम से विख्यात है {अध्याय 4}
“बाबा का शरीर अब वहीँ विश्रांति पा रहा है” — स्पष्ट है इसे दफन ही किया गया ! जहाँ उसे दफ़न किया गया वो मंदिर था किस का ?
भगवान श्री कृष्ण का ! बुधवार संध्या को बाबा का पवित्र शरीर बड़ी धूमधाम से लाया गया और विधिपूर्वक उस स्थान पर समाधी बना दी गई ! सच तो ये है की बाबा ‘मुरलीधर’ बन गये और समाधी मंदिर एक पवित्र देव स्थान ! {अध्याय ४३ }
श्री कृष्ण के मंदिर में इस सड़ी लाश को गाडा गया !! और पूज दिया गया ! कई साईं भक्तों का ये भी कहना है की बाबा ने कभी भी स्वयं को भगवान नही कहा, तो आईये उनके मतिभ्रम का भी समाधान करते है :-
निम्न प्रति साईं सत्चरित्र अध्याय 3 की है :-
इस पुस्तक में और भी पचासों जगह बाबा ने स्वयं को ईश्वर कहा है ! हम केवल यह एक ही उदहारण दे रहे है !
ये हाल है दोस्तों :– करोडो भारतियों की आस्था के साथ बलात्कार किया गया है एक बार नही बारम्बार !!! जिन्हें ईश्वर ने जरा सी भी बुद्धि दी है वो तो उपरोक्त वर्णन से ही समझ चुके होंगे ! शिर्डी वाले का भांडा फूटते ही —->
सत्य साईं का अपने आप ही फुट गया क्यू की सत्य साईं उसी का अवतार था !
—->दोस्तों साईं और सत्य साईं की पोल पूरी खुल ही चुकी है परन्तु हमारे करोडो भाई-बहिनों-माताओं आदि के ह्रदय में इनका जहर घोला गया वो उतरना अति अति आवश्यक है ! इसलिए आगे बढ़ते है और अभी भी मात्र लोगोको सत्य दिखने के लिए इसे(शिर्डी वाले को) चमत्कारी ही मान कर चलते है ! —————————————————————
–साईं बाबा का जीवन काल 1838 से 1918 (80 वर्ष) तक था (अध्याय 10 ) , उनके जीवन काल के मध्य हुई घटनाये जो मन में शंकाएं पैदा करती हैं की क्या वो सच में भगवान थे , क्या वो सच में लोगो का दुःख दूर कर सकते है?
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