शिरडी साई : वैदिक धर्म के लिए एक अभिशाप ? साई का पुरा सच...
(6) ऐसे ही एक अवसर पर उन्होने दादा से कहा कि देखो तो नमकीन पुलाव कैसा पका है? दादा ने योँ ही मुँहदेखी कह दिया कि अच्छा है। तब बाबा कहने लगे कि तुमने न अपनी आँखोँ से ही देखा है और न ही जिह्वा से स्वाद लिया, फिर तुमने यह कैसे कह दिया कि उत्तम बना है? थोड़ा ढक्कन हटाकर तो देखो। बाबा ने दादा की बाँह पकड़ी और बलपूर्वक बर्तन मेँ डालकर बोले -”अपना कट्टरपन छोड़ो और थोड़ा चखकर देखो”। -:अध्याय 38. पृष्ठ 270.
प्रश्न:-
{1} क्या साँई की नजर मेँ हलाली मेँ प्रयुक्त जीव ,जीव नहीँ कहे जाते?
{2} क्या एक संत या महापुरूष द्वारा क्षणभंगुर जिह्वा के स्वाद के लिए बेजुबान नीरीह जीवोँ का मारा जाना उचित होगा?
{3} सनातन धर्म के अनुसार जीवहत्या पाप है। तो क्या साँई पापी नहीँ?
{4} एक पापी जिसको स्वयं क्षणभंगुर जिह्वा के स्वाद की तृष्णा थी, क्या वो आपको मोक्ष का स्वाद चखा पायेगा?
इसके उलट भगवान श्रीकृष्ण के अनुसार जो व्यक्ती मांसाहार का सेवन करता हैँ, वो तामसी और पापी व्यक्ती अधोगती अर्थात नरक को प्राप्त होता हैँ। भगवान गिता के 17 वे अध्याय के 10 वे श्लोक मेँ कहते हैँ,
यातयामं गतरसं पूति पर्युषितं च यत्। उच्छिष्टमपि चामेध्यं भोजनं तामसप्रियम्॥
अर्थात, हे अर्जुन ! जो भोजन अधपका, रसरहित, दुर्गन्धयुक्त, बासी और उच्छिष्ट है तथा जो अपवित्र अर्थात मांसाहार भी है, वह भोजन तामस पुरुष को प्रिय होता है ॥10॥
और तामस लोक कौनसी गती को प्राप्त होते हैँ, ये समझाते हुये भगवान गिता के 14 वे अध्याय के 18 वे श्लोक मेँ कहते हैँ।
ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसाः । जघन्यगुणवृत्तिस्था अधो गच्छन्ति तामसाः ॥
अर्थात हे अर्जुन !सत्त्वगुण में स्थित पुरुष स्वर्गादि उच्च लोकों को जाते हैं, रजोगुण में स्थित राजस पुरुष मध्य में अर्थात मनुष्य लोक में ही रहते हैं और तमोगुण के कार्यरूप निद्रा, प्रमाद और आलस्यादि में स्थित तामस पुरुष अधोगति को अर्थात कीट, पशु आदि नीच योनियों को तथा नरकों को प्राप्त होते हैं॥18॥
{5} तो क्या ऐसे नीचकर्म करने वाले को आप अपना आराध्य या ईश्वर कहना चाहेँगे?
[C] साँई हिन्दू है या मुस्लिम ? व क्या हिन्दू- मुस्लिम एकता का प्रतीक है?
कई साँईभक्त अंधश्रध्दा मेँ डूबकर कहते हैँ कि साँई न तो हिन्दू थे और न ही मुस्लिम। इसके लिए अगर उनके जीवन चरित्र का प्रमाण देँ तो दुराग्रह वश उसके भक्त कुतर्कोँ की झड़ियाँ लगा देते हैँ। ऐसे मेँ अगर साँई खुद को मुल्ला होना स्वीकार करे तो मुर्देभक्त क्या कहना चाहेँगे ? जी, हाँ!
प्रमाणः–
(1) शिरडी पहुँचने पर जब वह मस्जिद मेँ घुसा तो बाबा अत्यन्त क्रोधित हो गये और उसे उन्होने मस्जिद मेँ आने की मनाही कर दी। वे गर्जन कर कहने लगे कि इसे बाहर निकाल दो। फिर मेधा की ओर देखकर कहने लगे कि तुम तो एक उच्च कुलीन ब्राह्मण हो और मैँ निम्न जाति का यवन (मुसलमान)। तुम्हारी जाति भ्रष्ट हो जायेगी। -:अध्याय 28. पृष्ठ 197.
(2) मुझे इस झंझट से दूर ही रहने दो। मैँ तो एक फकीर(मुस्लिम, हिन्दू साधू कहे जाते हैँ फकीर नहीँ) हूँ।मुझे गंगाजल से क्या प्रायोजन? -:अध्याय 32. पृष्ठ 228.
(3) महाराष्ट्र मेँ शिरडी साँई मन्दिर मेँ गायी जाने वाली आरती का अंश- “गोपीचंदा मंदा त्वांची उदरिले! मोमीन वंशी जन्मुनी लोँका तारिले!” उपरोक्त आरती मेँ “मोमीन” अर्थात् मुसलमान शब्द स्पष्ट आया है।
(4) मुस्लिम होने के कारण माँसाहार आदि का सेवन करना उनकी पहली पसन्द थी।
प्रश्नः
{1} साँई जिन्दगी भर एक मस्जिद मेँ रहा, क्या इससे भी वह मुस्लिम सिध्द नहीँ हुआ? यदि वह वास्तव मेँ हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक होता तो उसे मन्दिर मेँ रहने मेँ क्या बुराई थी?
{2} सिर से पाँव तक इस्लामी वस्त्र, सिर को हमेशा मुस्लिम परिधान कफनी मेँ बाँधकर रखना व एक लम्बी दाढ़ी, यदि वो हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक होता तो उसे ऐसे ढ़ोँग करने की क्या आवश्यकता थी? क्या ये मुस्लिम कट्टरता के लक्षण नहीँ हैँ?
{3} वह जिन्दगी भर एक मस्जिद मेँ रहा, परन्तु उसकी जिद थी की मरणोपरान्त उसे एक मन्दिर मेँ दफना दिया जाये, क्या ये न्याय अथवा धर्म संगत है? “ध्यान रहे ताजमहल जैसी अनेक हिन्दू मन्दिरेँ व इमारते ऐसी ही कट्टरता की बली चढ़ चुकी हैँ।”
{4} उसका अपना व्यक्तिगत जीवन कुरान व अल-फतीहा का पाठ करने मेँ व्यतीत हुआ, वेद व गीता नहीँ?, तो क्या वो अब भी हिन्दू मुस्लिम एकता का सूत्र होने का हक रखता है?
{5} उसका सर्वप्रमुख कथन था “अल्लाह मालिक है।”परन्तु मृत्युपश्चात् उसके द्वितीय कथन “सबका मालिक एक है” को एक विशेष नीति के तहत सिक्के के जोर पर प्रसारित किया गया। यदि ऐसा होता तो उसने ईश्वर-अल्लाह के एक होने की बात क्योँ नहीँ की?
अन्य प्रमुख आक्षेप:
साईं एक टूटी हुयी मस्जिद में रहा करते थे और सर पर कफनी बंधा करते थे. सदा ” अल्लाह मालिक” एवं ” सबका मालिक एक” पुकारा करते थे ये दोनों ही शब्द मुस्लिम धर्म से संभंधित हैं.
साईं का जीवन चरित्र उनके एक भक्त हेमापंदित ने लिखा है. वो लिखते हैं की बाबा एक दिन गेहूं पीस रहे थे. ये बात सुनकर गाँव के लोग एकत्रित हो गए और चार औरतों ने उनके हाथ से चक्की ले ली और खुद गेहूं पिसना प्रारंभ कर दिया. पहले तो बाबा क्रोधित हुए फिर मुस्कुराने लगे. जब गेंहूँ पीस गए त्तो उन स्त्रियों ने सोचा की गेहूं का बाबा क्या करेंगे और उन्होंने उस पिसे हुए गेंहू को आपस में बाँट लिया.